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गौ विकास संवर्धन बोर्ड

गाय का धार्मिक एवं संस्कृतिक महत्वः- हिन्दू धर्म-पुराणों के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ करोड़ नही, प्रकार होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता है- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रूद्र और 2 अष्विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं। अथर्ववेद के अनुसार ‘धेनु सदानाम रइनाम‘ अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय समृद्धि व प्रचुरता की द्योतक है। वह जननी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियां का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है। हिन्दू धम में सबसे पवित्र पशु की संज्ञा दी गयी है। इस धरती तर पहले गायों की कुछ ही प्रजातियां होती थी। उससे भी प्रारंभिक काल में एक ही प्रजाति थी। एक शोध के अनुसार आज से लगभग 9500 वर्ष पूर्व गुरू वशिष्ट ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थी जिनका नाम कामधेनु, कपिला, दवनी, नंदनी, भौमा आदि था। पौराणिक कथा के अनुसार कामधेनु के लिए गुरू वशिष्ट से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया। लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नही दिया। गाय के इस झगड़े में गुरू वशिष्ट के 100 पुत्र मारे गए थे। इस प्रकार हम पाते है कि गाय हमारे जीवन में कितना महत्व रखती है, भारतीय गाय का महत्व छिपा नही है हमारे महात्माओं ने भी इसके दिब्य गुणों को अगिकार किया है। भागवान श्रीकृष्ण ने गाय के महत्व को बढ़ाने के लिए गाय पूजा और गौशालाओं के निर्माण की नए सिरे से नीव रखी थी भगवान बालकृष्ण ने गाएं चराने का कार्य गोपाष्टमी से प्रारंभ किया था।

स्कंद पुराण के अनुसार ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय हैं

श्रीराम ने वनगमन से पूर्व किसी त्रिजट नामक ब्राहामण को गाय दान की थी।

ईसा मसीह ने कहा था- एक गाय बैल को मारना एक मनुष्य को मारने के समान है।

गुरू गोविंद सिंह ने कहा, यही देहु आज्ञा तुरूक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटाऊं।

प्रसिद्ध मुस्लिम संत रसखान की इच्छा थी कि यदि पशु के रूप में मेरा जन्म हो तो मैं बाबा नंद की गायों के बीच में जन्म लूं।

पं. मदन मोहन मालवीय की अंतिम इच्छा थी कि भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंष हत्या निषेध की बने। भगवान बुद्ध को गाय के पास उस क्षेत्र के सरदार की बेटी सुजाता द्वारा गायां के दूध की खीर खानें पर तुरंत ज्ञान और मुक्ति का मार्ग मिला। बुद्ध गायों को मनुष्य की परम मित्र कहते है।

जैन आगमों में कामधेनु को स्वर्ग की गाय कहा गया है और प्राणिमात्र को अवध्या माना है। भगवान महावीर के अनुसार गौ रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नही है।

गांधीजी ने कहा कि गौवंष की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है, भारत की सुख-समृद्धि गाय के साथ जुड़ी हुई है। गाय प्रसन्नता और उन्नति की जननी है, गाय कई प्रकार से अपनी जननी से भी श्रेष्ठ है।

सकारात्मक उर्जा का भण्डार:

वर्तमान वैज्ञानिकों द्वारा यह सिद्ध हो गया है कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑकसीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते है। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते है।

वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि गाय में जितनी सकारात्मक उर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नही।

गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूयकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाते है तथा गाय की रीढ़ में स्थित सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविशनाषक होती है, सूर्यकेतु नाड़ी के संपर्क में आने पर स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतो में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।

देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ जीवाणु होते है तथा एक तोला(10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है।

घर के आसपास गाय के होने का मतलब है कि आप सभी तरह के संकटों से दूर रहकर सुख और समृद्धिपूर्वक जीवन जी रहे है। गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ, सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है।

पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है। पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है, पंचगव्य द्वारा शरीर की रोग निरोधक क्षमता के बढ़ाकर रोगों के दूर किया जाता है। ऐसा कोई रोग नही है जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके।

भारतीय किसानों का गाय की महत्ताः- भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि ही भारत की आय का मुख्य स्रोत हे। ऐसी अवस्था में किसान को ही भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाना चाहिए और गाय किसान की सबसे अच्छी साथी है। गाय के बिना किसान व भारतीय कृषि अधूरी है। प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य में जितनी गाए होती थी, उसको उतना ही संपन्न माना जाता है किंतु वर्तमान परिस्थितियों में किसान व गाय दोनो की स्थिति हमारे भारतीय समाज में दयनीय है। इसका दुष्परिणाम भी झेलने पड़ रहे है। एक समय वह भी था, जब भारतीय कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था। इसका कारण केवल गाय थी। भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन थे। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्त्रों वर्षो से सोना उगलती आ रही है। किंतु हरित क्रांति के नाम पर सन् 1960 से 1985 तक रासयनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि को नष्ट कर दिया गया। अब खेतों से कैसर जैसी बीमारियों की उत्पत्ति होती है। रासायनिक खेती ने धरती की उर्वरा शक्ति को घटाकर इसे बांझ बना दिया। गाय के गोबर में गौमृत्र, नीम, धतूरा, आक आदि के पत्तों के मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा खेतो को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जा सकता है। वर्षो से हमारे भारतीय किसान यही करते आए है। आधुनिक विकास के नाम पर अमेरिकी और यूरोपीय लोगों ने हमारी सभ्यता संस्कृति के साथ ही हमारी धरती को भी नष्ट कर दिया।

गायों की प्रमुख नस्लेंः- भारत में आजकल गाय की प्रमुख 30 नस्लें पाई जाती है। गायों की यूं तो कई नस्ले होती है, लेकिन भारत में मुख्यतः साहीवाल(पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गिर (दक्षिण काठियावाड़) थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ(राजस्थान), सिंध(सिंध का कोहिस्तान, बलूचिस्तान), कांकरेज(कच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण पूर्व का भू-भाग), मालवी(मध्यप्रदेश, ग्वालियर), नागौरी(जोधपुर के आसपास), पंवार(पीलीभीत, पूरनपुर तहसील और खीरी), भगनाड़ी(नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश), दज्जल(पंजाब के डेरा गाजी खां जिला), गावलाव(सतपुड़ा की तराई, वर्धा, छिंदवाड़ा, नागपुर, सिवनी तथा बहियर), हरियाणा(रोहतक, हिसार, सिरसा, करनाल, गुडगांव और जींद), अंगोल या नीलोर(तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, गुंटूर, नीलोर, बपटतला तथा सदनपल्ली), निमाड़ी(नर्मदा घाटी), देवनी( दक्षिण आंध्रप्रदेश, हिंसोल) आदि है। अन्य गायओं में राठ अनवर की गाएं और अमृतमहल, हल्लीकर, बरगूर, बालमबादी नस्लें मैसूर की वत्सप्रधान, एकांगी गाएं हैं। कंगायम और कृष्णवल्ली दूध देने वाली है। विदेशी नस्ल में जर्सी गाय सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह गाय दूध भी अधिक देती है। गाय कई रंगों जैसे सफेद, काला, लाल, बादामी तथा चितकबरी होती है। भारतीय गाय छोटी होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी होता है।

बायोगैस, गोबर गैसः गैस और बिजली संकट के दौर में गाँवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्रोत हैं किंतु य बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंष है, तब तक हमें यह उर्जा मिलती रहेगी।

प्लांट के पर्यावरणीय फायदे : एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है। जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवन दान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। इसके निम्न फायदे इस प्रकार हैः

  • गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षो से सोना उगलती आ रही है।
  • वैज्ञानिक कहते है कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंउे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते है तथा दुर्गंध का नास हो जाता है।
  • गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक उर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी ये सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
  • गौमूत्र और गोबर फ़सलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए है। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फ़ायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है।
  • कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वही उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी और पैसा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है।

गाय का दूध के फायदेः

  • गाय का दूध पीने से शक्ति का संचार होता है। यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
  • गाय के दूध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है।
  • गाय का दूध फैटरहित, शक्तिषाली होता है। उसे पीने से माटापा नही बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है।
  • गाय के घी व गोबर से निकलने वाले धुएं से प्रदूशणजनित रोगों से बचा जा सकता है।
  • गाय का दूध व घी अमृत के समान हैं। गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन से अनेक बीमारियां दूर रहती है।
  • भारतीय देसी गाय सफेद रंग की गाय का दूध पाचक होता है, जो शरीर को हष्ट-पुष्ट बनाता है। जबकि चितकबरी गाय का दूध पित्त बढाता है, जो शरीर को चंल बनाता है।
  •  काले रंग की गाय का दूध रक्त बढ़ता है, जो शरीर को स्फूर्ति वाला बनाता है।
  • पीले रंग की गाय का दूध पित्त को संतुलित करता है, जो शरीर को ओजपूर्ण बनाता है।
  • गाय के दूध में कैल्शियम 200 प्रतिशत, फॉस्फोरस 150 प्रतिशत, लौह 20 प्रतिशत, गंधक 50 प्रतिशत, पोटैषियम 50 प्रतिशत, सोडियम 10 प्रतिशत पाए जाते है तथा गाय के दूध में विटामिन सी 2 प्रतिशत, विटामिन ए (आईक्यू) 174 प्रतिशत और विटामिन डी 5 प्रतिशत होता है।

गाय का घी के फायदेंः ऐसी मान्यता है कि काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है।

  •  हाथ-पांव में जलन होने पर गाय के घी से मालिश करने पर आराम मिलेता है।
  • घी से हवन करने पर लगभग 1 टन ताजे ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने तथा धार्मिक समारोहों में यज्ञ करने की प्रथा प्रचलित है।
  • गाय का घी नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है, माईग्रेन दर्द ठीक हाता है तथा बाल झड़ना समाप्त हो जाता है।
  • देसी गाय के घी में कैंसर से लड़न की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है और दो बूंद देसी गाय का घी आंखों में डालने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।

गौमूत्र क फायदेः गौमूत्र को सबसे उत्तम औषधियों की लिस्ट में शामिल किया गया है। वैज्ञानिक कहते है कि गौमूत्र में पारद और गंधक के तात्विक गुण होते हैं यदि आप गौमूत्र का सेवन कर रहे है तो प्लीहा और यकृत के रोग नष्ट कर रहे हैं। गौमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फॉस्फेट सोडियम, पोटैशियम, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सियम, विटामिन ए, बी, डी, ई, एंजाइम, लैक्टोज, सल्फ़्यूरिक अम्ल, हाइड्रॉक्साइड आदि मुख्य रूप से पाए जाते है। यूरिया मूत्रल, कीटाणुनाशक है। पोटैशियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मैग्नीशियम एवं कैल्सियम हृदय गति का नियमन करते है।

  • गौमूत्र कैंसर जैसे असाध्य रोगों को भी जड़ से दूर कर सकता है। गौमूत्र चिकित्सा वैज्ञानिक कहते है कि गाय का लिवर 4 भागों में बंटा होता है। इसके अंतिम हिस्से में एक प्रकार का एसिड होता है, जौ कैंसर जैसे रोग को जड़ से मिटाने की क्षमता रखता है। गौमूत्र का खाली पेट प्रतिदिन निश्चित मात्रा में सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
  • गाय के मूत्र में पोटैशियम, साडियम, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है। दूध देते समय गाय के मूत्र में लैक्टोज की वृद्धि होती है, जो हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है।
  • गौमूत्र में प्रति-ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गौमूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, आर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी संबंधित रोगों का उपचार भी संभव है।

दही के फायदेः दही हमारे पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाए रखने में बहुत ही कारगर सिद्ध होता है। रात में दही नही खाना चाहिए।

  • दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं, जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते है।
  • दही चेहरे, गर्दन व बाजू आदि के सौंदय्र को तो निखारता ही है, साथ ही यह बालों को पोशण देने में भी बहुत सहायक है।
  • दही के नियमित सेवन से आंतो के रोग और पेट की बीमारिया नही होती है तथा कई प्रकार के विटामिन बनन लगते हैं। दही में जो बैक्टीरिया होते है, वे लैक्टोज बैक्टीरिया उत्पन्न करते है।
  • दही में हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और गुर्दो की बीमारियों को रोकने की अद्भुत क्षमता है। यह हमारे रक्त में बनने वाले कोलेस्ट्रॉल नामक घातक पदार्थ को बढ़ने से रोकता है जिससे वह नसों में जमकर ब्लड सर्कुलेशन को प्रभावित न करे और हार्ट बीट सही बनी रहे।
  • दही में कैल्शियम की मात्रा काफी पाई जाती है, जो हमारे शरीर में हड्डियों का विकास करती है। दांतो एवं नाखूनों की मजबूती एवं मांसपेशियों के सही ढ़ग से काम करने में भी सहायता करती है।
  • दही के सेवन से शरीर की फालतू चर्बी कम करने में सहायता मिलती है।
  • नींद न आने से परेशान रहने वाले लोगों को दही व छाछ का सेवन करना चाहिए।
  • दही में बेसन मिलाकर लगाने से त्वाचा में निखार आता है, मुंहासे दूर होते हैं तथा दही में शहद मिलाकर चटाने से छोटे बच्चों के दांत आसानी से निकलते है।

छाछ या मठ्ठा के फायदेः छाछ में हेल्दी बैक्टीरिया और कार्बोहाइड्रेट्स, होते हैं, साथ ही लैक्टोज शरीर में आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है, जिससे आप तुरंत उर्जावान हो जाते है। छाछ पीने से पेट की गर्मी हट जाती है और पाचन तंत्र सुचारू रूप से कार्य करता है। यह स्वस्थ पोशक तत्वों जैसे लोहा, जस्ता, फॉस्फोरस और पोटैशियम से भरा होता है, जो कि शरीर के लिए बहुत ही जरूरी मिनरल माना जाता है।

मक्खन के फायदेंः मक्खन या बटर दुग्ध वर्ग का एक उत्पाद है, जो दही को बिलो(मथ) कर छाछ बनाते समय निकलता है। मक्खन कहलाता है इसे तपाकर ही घी निकाला जाता है।

  • गाय के दूध से निकाला हुआ मक्खन हितकारी, वृष्य, वर्ण को उत्तम करने वाला, बलकारी, अग्नि प्रदीपक, ग्राही और वात, पित्त, रक्त विकार, क्षय, बवासीर, लकवा तथा खांसी को नष्ट करता है।
  • गाय का मक्खन शारीरिक क्षमता बढ़ाने और पेट संबंधित सभी रोगों को दूर करने में सहायक होता है तथा गाय के मक्खन में मधु और मिश्री मिलाकर खाने से कई रोगों में लाभ मिलता है।

गाय संबर्धन समाधान नीति 2019

इस प्रकार हम देखते है कि गाय से प्राप्त दूध, दही, घी, छाछ, मक्खन, गोबर मूत्र में औषधिए गुणों के साथ असीमित आय की सम्भावनाए है। हम देखते है कि गाय से प्राप्त कोई भी तत्व बेकर नही होता। यह एक समृद्धि सूचक पशु है। जो भारत में उत्तम नस्ल के पाए जाते है। आज वर्तमान सरकार केवल बुचड़खानों से आने वाले आय स्रोतो को देख रही है वही, अगर गाय से प्राप्त तत्वों से निर्मित उत्पादों को विस्तारित करती। तो शायद भारत दुनिया का सबसे बड़ा देसी गाय निर्मित उत्तम गुणवत्ता वाले वस्तुओं का निर्माता होता।  

इन वस्तुओं से जो आय हमें प्राप्त होता। वह बुचड़ खानों से होने वाले आय का कई गुना होता। साथ ही हम देश को रासायनिक कीटनाशको के कुचक्र का अंत कर पाते । स्वास्थ्यवर्धक फल, सब्जी अनाज का उत्पादन होता। और देश की जनता को बीमारियों का दंश नही झेलना पड़ता।

इसलिए हमारी सरकार इसे राष्ट्रीय पशु घोषित करेगी। गौबध पर पूर्ण रूप से लगाम लगाएगी। हमारी सरकार गाय क्षमता को विस्तारित करेगी तथा गाय निर्मित उत्पादों को भारत ही नही अपितु विश्वस्तर के आय स्रोतो का विकल्प तैयार करेगी। इसके लिए विभिन्न उद्योगों का विस्तार करेगी।

गाय पालन केंद्रों का विस्तारः- हमारी सरकार प्रत्येक जिले स्तर पर भौगोलिक स्थिति के आधार पर कम से कम 1000 क्षमता के चारागाहों का निर्माण करावएगी तथा प्रत्येक ब्लाक स्तर पर 200 से 500 गाय की क्षमता वोले चारागहों को बनवाएगी। चारागहों के साथ दूध उत्पादन, जैविक खाद उत्पादन तथा गोबर एवं मूत्र से बनने वाले औषधि उत्पादन केंद्रों की स्थापना करेगी। जिसका आधुनिक प्रबंधन के आधार पर विपणन की व्यवस्था की जाएगी। निजी दूध उत्पादन करने वाले किसानों को दूध गुणवत्ता के आधार पर मूल्य निर्धारण के अनुसार किसानों को त्वरित भुगतान करेगी। प्रत्येक ब्लाक/नगर/जिले में ATM दूध विक्री केन्द्रों की स्थापना करेगी। जिससे देश के सभी नागरिकों को नकली दूध से बचाया जा सकें।

उर्बरक उत्पादन केंद्रो का विस्तार :- देश के प्रत्येक चारागाह के पास ही गाय के गोबर एवं मूत्र से निर्मित पौष्टिक खाद तथा जैविक खाद उत्पादन केन्द्रों की स्थापना की जाएगी। जिसके द्वारा भारत को रासायनिक खाद से मुक्त किया जाएगा। भारत को स्वस्थ्य भारत समृद्धि भारत बनना।

गाय के गोबर एवं मूत्र औषधियों का विस्तारः- चारागाह के ही समीप ऐसे उ़द्योगों को बढ़ावा दिया जाएगा कि गाय के गोबर एवं मूत्र द्वारा विभिन्न प्रकार के औषधि बनाया जा सके।


बायोगैस आधारित कार्ययोजनाः चारागाहो के समीप बायोगैस आधारित प्लान्टों का निर्माण किया जाएग जिससे देश में घरेलु गैस को सस्ता बनाया जा सकें जिससे देश सशक्त और समृद्धि बन सकें।

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