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न्याय व्यवस्था का आधुनिक प्रबंधन

भारत में 2013 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 85 फीसदी मुक़दमे, जिनमें दंगों के मामले 2,54,919 है, जख़्मी किये जाने के मामले 2201315 है, चोरी के मामले 1158500 है, हत्या के मामले 400981 है, अपहरण के मामले 211900 है, डकैती के मामले 157039 है, बलात्कार के मामले 125147 है, दहेज के चलते मौत के मामले 87673 है, आगजनी के मामले 64670 लंबित पड़े हैं।  

राष्ट्रीय अदालत प्रबंधन की 2015 रिपोर्ट के मुताबिक बीते तीन दशकों में मुक़द्दमों की संख्या दोगुनी रफ्तार से बढ़ी है। अगर यही स्थिति बनी रही तो अगले तीस वर्षों में देश के विभिन्न अदालतों में लंबित मुक़द्दमों की संख्या करीब 15 करोड़ तक पहुंच जाएगी। इस मामले में विधि एवं न्याय मंत्रालय के आँकड़े भी चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश में 2015 तक देश के विभिन्न अदालतों में साढे तीन करोड़ से अधिक मुक़दमे लंबित थे। इनमें सर्वोच्च न्यायालय में 66,713, उच्च न्यायालयों में 49,57,833 और निचली अदालतों में 2,75,84,617 मुकदमे 2015 तक लंबित थे।

देश में न्याय व्यवस्था को सुधारने के लिए देश की अदालतों की संख्या और जजों की संख्या में इजाफे की सख्त जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में आज भी 6 जजों की कमी है। जबकि देश के उच्च न्यायालय में 265 जजों की है, वही जिला और सत्र न्यायालयों में 4288 जजों की कमी है।

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की तुलना में निचली और जिला अदालतों की हालत ज्यादा खराब है। मुक़द्दमों की शुरूआत यही से होती है, लेकिन यहां न तो पक्ष कार सुरक्षित है, और न ही मुक़द्दमों से जुड़े दस्तावेज़। जाली दस्तावेज़ और गवाहों के आधार पर किस तरह यहां मुक़दमे दायर होते हैं, यह तथ्य किसी से छुपा नही है। ज्यादातर दीवानी मामलों में जमीनो का गलत लगान निर्धारण, दखल-कब्ज़ा घोषित आदि कई ऐसे प्रसंग है, जो न केवल विवाद को बढ़ावा देते हैं, बल्कि उसकी परिणति में सामूहिक हत्याएँ भी होती हैं। मध्य बिहार में हुए ज्यादतर नरसंहारों की मूल वजह भूमि विवाद ही रही है। ज़मीन-विवाद के कारण देश में हर साल हजारों लोगों की हत्याएँ होती हैं। दीवानी मुक़द्दमों का आलम यह है कि आखिरी फैसला आने तक कई लाशें बिछ जाती हैं और मामला दीवानी के साथ-साथ फौजदारी में भी तब्दील हो जाता है।

भारत में जमींदारी उन्मूलन से पहल समय पर लगान अदा नही करने वाले काश्तकारों की जमीनें नीलाम कर दी जाती थी। देश की अदालतों में ज्यादातर स्वत्ववाद यानी टाइटिल सूट नीलामी की प्रक्रिया को चुनौती देने को लेकर है। मौजूदा समय में कई ऐस भू-माफिया गिरोह सक्रिय है, जो पूर्व जमीदारों के साथ मिलकर ब्रिटिश क़ालीन सादे स्टंप पेपर पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तैयार करते हैं। इन्ही दस्तावेज़ों के आधार पर वे न्यायालय में मुकदमा भी दायर करते हैं। उनकी याचिकाएं मंज़ूर भी हो जाती हैं। इस तरह न्यायालयों में बेबुनियाद मुक़द्दमों की शुरूआत हो जाती है। निचली अदालतों में जाली दस्तावेज़ों की जांच करने की प्रक्रिया बहुत लंबी और उबाऊ है। लिहाजा कानून के साथ खिलवाड़ करने वालों के एक सुनहरा मौका मिल जाता है। इस तरह अपराधियों का मनोबल बढ़ता जाता है। 

हमारे बार और बेंच न्यायिक प्रक्रिया के मूल आधार हैं। मुक़द्दमों के अंबार लगने के पीछे बड़ी वजह है, धीमी सुनवाई। स्थिति यह है, कि दीवानी का मामला हो या फौजदारी का। केवल मुंसिफ कोर्ट में मुक़दमे पच्चीस-तीस साल तक चलते रहते हैं। वहां से फैसला हुआ, तो सत्र न्यायालयों में बीस-पच्चीस साल लग जाता है। वहां से उच्च न्यायालय में स्थगन आदि होने पर दस-पांच साल और निकल जाते हैं। स्थिति लगातार भयावह होती जाती है। यह सभी कारण मुक़दमे दायर होने की मूल वजह होते हैं।

हमारी कानून व्यवस्थाओं में लचीलापन होने के कारण लोग इसे कठपुतलियों की भांति इस्तेमाल करने लगते है। देश के कुछ ऐसे लोग हैं, जो शासन सत्ता के अधिकारों को व्यक्तिगत लाभ और दुश्मनी निभाने के लिए उपयोग करते है। ऐसे लोग अपने रसूल और दंबगई के बल पर कानून से खेलने का प्रयास करते रहते है। इन व्यवस्था से कुछ लोग लड़ाई लड़ते है, और कुछ लोग परेशान होकर, अपने आप को ऐसे व्यक्तियों के सामने घुटने टेक देते है, या मारे जाते है। इसमे आम जन मानस को परेशानियाँ उठानी पड़ती है। चूँकि देश में कानून बदलने की एक लंबी प्रक्रिया है। इसलिए मुकदमो की संख्या बढ़ाती जा रही है।

न्याय समाधान नीति

जैसा आप जानते है अधिकतर मुक़द्दमों की मूल वजह ज़मीनी विवाद से शुरू होता है। हम यह भी जानते है कि निचली अदालतों की क्या स्थिति है? हमने खासकर ज़मीनी मुक़द्दमों की मूल वजह को समाप्त करने की एक प्रणाली को विकसित किया है। इसलिए हमने भूमि विवाद से जुड़ीं तमाम मामलो का एक पारदर्शी प्रबंधन किया है। जो इस प्रकार से है :

हमारी सरकार भारतीय  पहचान संख्या पुष्टि आधार पर भूमि खाते का संचालन करेगी। जिसके अंतर्गत हम प्रत्येक नागरिक के पुस्तैनी ज़मीनी दस्तावेज़ों के आधार पर, एक भूमि खाता संख्या प्रदान करेंगे।  जिसमे उस व्यक्ति से संबंधित  भूमि दस्तावेज़ों और उनकी खतौनी संख्या जुड़ीं होगी। इस प्रकार व्यक्ति ने जितने भी भूमि बेची व खरीदी होगी, सभी इसी से जोड़े जायेंगे। भविष्य में इसी संख्या द्वारा भूमि की रजिस्ट्री, बँटवारा, वरासत आदि  किये जाएँगे। 

हमारी सरकार फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों और गवाहों के आधार पर मुकदमा करने वाले और उनके अधिवक्ताओं के लिए कड़े कानून लाएगी। हमारे इस कड़े कानून के अंतर्गत फ़र्ज़ी मुकदमे दायर करने वाले व्यक्तिओं को 25 साल की सजा और 25 लाख जुर्माना या दोनों भोगना होगा। इस तरह हम फ़र्ज़ी मुक़द्दमों को नियंत्रित करेंगे। 

हमारी सरकार चल रही पुरानी फ़र्ज़ी मुक़द्दमों और दस्तावेज़ों की जाँच के लिए एक गुप्त एजेंसी बनाएगी। जिनका मूल कार्य वादी व प्रतिवादी से बिना मिले, फ़र्ज़ी मुक़द्दमों के दस्तावेज़ों की जाँच करना है।

हम वादी प्रतिवादी के मूल दस्तावेज़ों के आकलन और मूल्यांकन करने के लिए एक पैनल प्रदान करेगी।  जिसमे व्यक्ति स्वयं या अधिवक्ता की सहायता के जरिये अपने मूल दस्तावेज़ों, वीडियो और ऑइडो रिकॉर्ड को अपलोड कर सकता है।  जिनके आधार पर मुकदमे देखे जायेंगे। इस प्रणाली में बयानों को बदलने और दस्तावेज़ों के गलत पेस करने पर कड़े कार्यवाही का प्रावधान होगा। 

एफ़आईआर प्रबंधन : हमारी सरकार मुकदमो के प्रबंधन के लिए वेब एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर एवं एप्प जारी करेगी। इस प्रणाली द्वारा व्यक्ति स्वयं या अन्य  की घटना की त्वारित जानकारी वीडियो, वाइस रिर्काडिग के माध्यम से अपलोड कर सकेगा। जिन्हे तुरंत एफ़आईआर संख्या प्राप्त होगी। जिसकी सूचना स्थानीय पुलिस कार्यालय से जुड़े सभी संबंधित अधिकारी को मिलेगा।  जिसपर स्थानीय पुलिस अधिकारी विवेचना के आधार पर अपने रिपोर्ट सबमिट करेगा। इस प्रकार मुकदमा संख्या स्थापित होगा।  


मुक़द्दमों की सुगमताः- सभी स्थानीय जिले स्तर पर एक लाईव वीडियो कॉन्फ़्रेंस हॉल तैयार किया जायेगा। जिसके अर्न्तगत स्थानीय व्यक्ति हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के केस की सुनवाई लाईव वीडियो कॉन्फ़्रेंस हॉल के द्वारा कर सकेगा। इस प्रकार लंबी दूरी के लोगो को आने-जाने की आवश्यकता नहीं होगी है। इस प्रणाली से दो बड़े लाभ होंगे पहला व्यक्ति की सुरक्षा और दूसरा सरकार और व्यक्ति के समय और धन की बचत। इस प्रकार न्याय सुरक्षित पारदर्शी और सरल होगा। मुक़द्दमों के दस्तावेज़ ऑनलाइन होने से स्थानीय स्तर पर फेर बदल की समस्या समाप्त हो जायेगी। लोगों को न्याय मिलने में सुगमता प्राप्त होगा।

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