भारत महापरिवार पार्टी में आपका स्वागत है
BMPBMPBMP

पर्यावरण मामलों का आधुनिक प्रबंधन

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को बहुत महत्व दिया गया है। भारत के विभिन्न संस्कृतियों में इसके उल्लेख मिलते है। हडप्पा संस्कृति पर्यावरण से ओत-प्रोत थी। तो वैदिक संस्कृति पर्यावरण-संरक्षण हेतु पर्याय बनी रही। भारतीय मनीषियों ने समूची प्रकृति ही क्या, सभी प्राकृतिक शक्तियों को देवता स्वरूप माना। उर्जा के स्रोत, सूर्य को देवता मानकर युगो-युगों से उनकी पूजा की जाती रही है, उन्हें सूर्य दवो भवः कहकर पूकारा जाता रहा है। भारतीय संस्कृति में जल को भी देवता माना गया तथा सरिताओं(नदियां) को जीवन दायिनी कहा गया है। इसलिए प्राचीन संस्कृतियों का उद्भव सरिताओं के किनारे हुई, और पनपी है। भारतीय संस्कृति में केला, पीपल, तुलसी, बरगद, आम आदि पेड़ पौधों की पूजा की जाती रही है। 

मध्यकालीन एवं मुगलकालीन में पर्यावरण का समाजस्य सामान्य रहा। परन्तु अंग्रेजों ने भारत में अपने आर्थिक लाभ के कारण पर्यावरण को नष्ट करने का कार्य प्रारम्भ किया। विनाशकारी दोहन के कारण पारिस्थितिकीय असंतुलन भारतीय पर्यावरण में ब्रिटिश काल में ही दिखने लगा था। स्वतंत्र भारत में लोगों में पश्चिमी प्रभाव, औद्योगीकरण तथा जनसंख्या विस्फोट के परिणामस्वरूप तृष्णा जाग गई।  जिसने देश में विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को जन्म दिया।

विश्व आर्थिक मंच के साथ येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय के द्विवार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018 पर भारत पांच देशों में से एक है, 2016 में 141 से 36 अंक कम हो रहा है। जहाँ तक भारत पर्यावरण स्वास्थ्य श्रेणी में सूची के नीचे है। जहाँ हवा की गुणवत्ता का संबंध है, वहाँ 180 में से 178 में इसका स्थान है। इसकी 180 देशों में 177 की कम रैंकिंग, ‘‘ भारत के कम स्कोर पर्यावरण स्वास्थ्य नीति उद्देश्य में खराब प्रदर्शन से प्रभावित है। पीएम 2.5 के लिए जिम्मेदार ठहराए गए मौत पिछले एक दशक से बढ़ गए हैं और प्रति वर्ष 16,40,113 अनुमान है।  ( स्वास्थ्य मीट्रिक और मूल्यकांन संस्थान, 2017) रिर्पोट में कहा गया है कि सरकार की कार्यवाई के बावजूद, ठोस वाहनों, कोयले और फसल के अवशेषों और मोटर वाहनों के उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण से हवा की गुणवत्ता में गंभीर रूप से गिरावट आई है।‘‘

वर्तमान सरकार नीतिः- पर्यावरण मंत्रालय का बजट देखें तो मात्र 2675 करोड़ 42 लाख रूपए का बजट रहा। यानि जिस देश में प्रदूषण के कारण होने वाली बिमारियों से हर 5 मिनट में 25 लाख से ज्यादा लोग प्रतिवर्ष मर जाते है।  उस देश में भारत सरकार का पर्यावरण बजट 2017-18 में 2675.42 हजार करोड़ था, और यही बजट 2018-19 का भी है। अकेले 2014 के लोकसभा चुनाव में 3870 करोड़ रूपए खर्च किए गए। औसतन हर वर्ष बैंक से उधारी लेकर ना चुकाने वाले रईस 2 लाख करोड़ लेकर डकार रहे हैं। हिमाचल गुजरात के चुनाव प्रचार में ही 3000 करोड़ से ज्यादा फूंके जा रहे है। जो पर्यावरण मंत्रालय को संभालने भर के लिए नही है।

अगर देखें, तो इस बजट का एक बड़ा हिस्सा 439.56 करोड़ के कार्यालयों को संभालने पर खर्च किया जाता है। राज्यों को देने के लिए 962.01 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। सभी परियोजनाओं के लिए 915.21 करोड़ का बजट है। नियामक संस्थाओं के लिए 358.64 करोड़ का बजट है। इस पूरे बजट में, अगर हम केवल पर्यावरण को संभालने के लिए बजट को देखें, तो यह जानकर आश्चर्य होगा कि केवल 489.53 करोड़ है, जो सीधे पर्यावरण से संबंधित है।

प्रदूषण को लेकर जब हर कोई सेंट्रल पॉल्यूशनकंल बोर्ड से सवाल करता है। वहीँ     SPC का कुल बजट ही 74 करोड़ 30 लाख का है। पर्यावरण को लेकर जब देश के पर्यावरण मंत्रालय के कुल बजट का हाल ये है कि देश में प्रति व्यक्ति 21 रूपए सरकार खर्च करती है। एक तरफ देश में पर्यावरण मंत्रालय का बजट 2675.42 करोड़ है। वहीँ दूसरी तरफ पर्यावरण से बचने के उपाय करने वाली इंडस्ट्री का मुनाफ़ा 3 हजार करोड़ से ज्यादा का है। जहां आज दिल्ली को गैस चैबर का दर्जा मिल गया है। पर्यावरण मानकों की माने तो पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 10 का सामान्य लेवल 100 माईक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर(एमजीसीएम) होना चाहिए। वहीं दिल्ली के कुछ स्थानों पर 1600 तक पहुंच चुका है। पीएम 2.5 का नर्माल लेवल 60 (एमजीसीएम) होता है लेकिन यह 300 से 500 तक पहुँच जाता है।

पर्यावरण समाधान नीति : हमने पूर्ण पर्यावरण समाधान नीति को विकसित किया है। हमने जल संरक्षण प्रणाली और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की आधुनिक प्रणाली को विकसित किया है। जिसके द्वारा दो बड़ी समस्याओं को  हल किया गया है। पहला : भूमि-गत जल की वापसी। और दूसरा : वृक्षों पर आश्रित जीव जंतुओं की वापसी। इन समाधान को देखे :

जल सरक्षण प्रबंधन : हमारा मानना है कि अगर प्रकृति का दोहन न किया जा-ये तो सब फिर से सामान्य हो जायेगा। क्योंकि प्रकृति पुनर्निर्माण कार्य निरंतर करती रहती है। हमने अपने विकास के संसाधनों के निर्माण और उपभोग की अभिलाषा ने आज प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। अगर हम इस सामजस्य को सही कर ले, तो हम प्रकृति के संतुलन को पुनः सामान्य कर सकेंगे। इसलिए हमने अपने सभी समाधान के जरिए प्रकृति के संतुलन को बना-ये रखने की योजनाओं को तैयार किया है। जो इस प्रकार है :-

नदी संरक्षण :  हमारी सरकार नदी संरक्षण के लिए दो बड़े कदम उठाएगी। 

प्रथम समाधान के तहत देश की हर छोटी – बड़ी नदियों के दोनों किनारों का सीमांकन करके बांध बनाएगी। मृत पड़ी नदियों को जीवित करने के लिए बड़ी नदियों से उन्हें जोड़े-गी। उन क्षेत्रों में जहाँ नदियाँ नहीं है, वर्ष भर जल का संकट बना रहता है। वहां नहरों का विस्तार करके नदियों से जोड़ा जायेगा। जिससे दो समस्याओं का हल होगा। पहला : नदियों में आने वाले बाढ़ से होने वाले नुकसान को रोका जा सकेगा। दूसरा : सूखे से प्रभावित क्षेत्रों को वर्ष भर जल उपलब्ध होगा। 

दूसरे समाधान के तहत हम देश के नदियों के किनारे बने औद्योगिक कारख़ानों से निकलने वाले दूषित जल को नदियों में जाने से रोकना। जिसके तहत हम सभी  कारख़ानों के दूषित जल को साफ़ करने के लिए जल शो-धन केंद्र स्थापित करेंगे।  नालियों और कारख़ानों से निकलने वाले दूषित जल को रोकने और उन्हें पुनः साफ़ करने के लिए जगह-जगह जल शो-धन केंद्र स्थापित किये जायेंगे। इस तरह नदियों का संरक्षण किया जायेगा। 

भूमिगत जल सरक्षण :

हमारा मानना है कि हमने प्रकृति के साथ सही लेन-देन नही किया है। जिस कारण से आज हम प्रकृति द्वारा निःशुल्क मिलने वाले जीवन-रूपी जल को खोते जा रहे है। कहते है कि जीवन में किसी के साथ अधिक दुरी तक तभी चला जा सकता है जब तक हमारे लेन-देन बराबर रहेंगे। जो आज नहीं हो रहा है। जैसा कि हमे ज्ञात है कि आज हम जितनी तेजी से भूमि-गत जल का दोहन करते जा रहे है। क्या हम उतनी तेजी से भूमि को जल वापस कर रहे है, शायद नहीं। 

जिसका मुख्य कारण है। हमारे शहरी विकास की पथरी-ली पक्की सड़कें, इमारतें और अन्य व्यवस्थाए। पहले हमारे बीच जंगल, कुए और पोखरे अधिक मात्र में हुआ करते थे। आज हमारे विकास की नीति ने इसे परिवर्तित कर दिया है। इस कारण वर्तमान मे जो पानी की मात्र भूमि में अवशोषित होनी चाहिए। वह अब नही हो रहा है। आज जो कुछ भी भूमि-गत जल का स्रोत है, वह नदियाँ ही है। जो मृत होती जा रही है और जिसे हम दूषित करने में लगे है। इसलिए आज हम भूमि-गत जल की समस्या से जूझ रहे है।  

हमने भूमि-गत जल की समस्या और प्राकृत के संतुलन को बनाने के लिए एक  प्राकृतिक तकनीकी को विकसित किया है।  जो इस प्रकार है :

फील्टर ट्युब तकनीति :

शहरों के नालियों के बीच भराव को समाप्त करने के लिए जगह- जगह प्राकृतिक फील्टर ट्युब बनाया जायेगा। जिससे दूषित जल को साफ करके तुरंत भूमि-गत किया जा सके। 

प्रत्येक घर और कालोनियों में प्राकृतिक फील्टर ट्युब बनाया जायेगा। जिससे  वहां से निकलने वाले दूषित जल को नालियों में जाने से रोका जा  सके । इस तरह हम दूषित जल को नलियों में जाने से और नदियों में गिरने से रोक सकेंगे। 

फील्टर ट्युब सरचना :

यह एक 3 फिट चौड़ा और ४ फिट गहरा एक चौकोर टैंक नुमा होगा। उस टैंक के बीच में 6 इंच चौड़ा पाईप भूमि के प्रथम जल स्रोत तक बोर किया जाएगा। जिस पाईप में नीचे की तरफ छोटे-छोटे छिद्र होगें। हम मो-रंग, पत्थर और कंकरीट को मिलकर एक महीन जाली का प्रयोग करके एक कैप्सूल बनायेगे। जो ३ फिट चौड़ा  और ३ फिट लंबा होगा। जिसे टैंक में डाला जायेगा। जो धीरे धीरे दूषित जल को  फ़िल्टर करके भूमि गत करता जायेगा। फील्टर ट्युब कैप्सूल के गंदा हो जाने पर उसे बदल दिया जायेगा। इस तरह हम जल को अधिक से अधिक मात्रा में भूमि गत कर सकेंगे। साथ ही नगर व कस्बों के पानी को नदियों में जाने रोका जा सकेगा। इससे जल भारव की समस्या का पूर्णतयः अंत होगा।

वायु प्रदूषण समाधान नीति – 2019:

वर्तमान में सरकार योजनाओं के जरिए पेड़ लगाने के नाम पर, हजारों करोड़ रुपया खर्च करती है, कहने को यह रुपया, पेड़ लगाने में खर्च किया जाता है। लेकिन योजनाओं को ज़मीन पर लाते-लाते निर्धारित बजट का 75 प्रतिशत हिस्सा, हमारा सिस्टम तंत्र ही खा जाता है। ऐसे में जो पेड़ लगाये जाते है, उनमें ज्यादातर, उन्हें कागज़ों में पूरा कर लिया जाता है। इस तरह से लगाए जाने वाले पेड़ न तो दीर्घायु होते हैं और न ही ऑक्सीजन युक्त। यह सिलसिला हर वर्ष चलता है। इसलिए आज प्रदूषण की समस्या और भी गंभीर होती जा रही है। 

इसलिए हमने पेड़ लगाने और उसकी देखभाल करने की एक पूर्ण प्रबंधन प्रणाली को विकसित किया है। साथ ही पेड़ लगाने के स्थानों को भी चयनित किया है। जो इस प्रकार से है :

वृक्षारोपण प्रणाली : हमने अधिक से अधिक पेड़ लगाने और पेड़ की स्थिति का  स्पष्ट आकलन करने के लिए माय ट्री नाम से एक एप्प जारी किया है।  जिसके द्वारा हम देश के उन युवाओं से आग्रह करेंगे, जो पेड़ लगाने में रूचि रखते है।  जिन्हे हमारी सरकार पेड़ का मूल्य और उसकी देखभाल का सीधा लाभ प्रदान करेगी।  हम पेड़ो को काटने से बचने के लिए ट्री प्लांटिंग यंत्र का उपयोग करके पेड़ो का प्रबंधन किया जायेगा। 

हमारा मकसद वर्तमान सिस्टम प्रणाली को समाप्त करना है। जिससे इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सके। हम एक ही प्रणाली द्वारा अधिक से अधिक पारदर्शी तरीके से पेड़ लगा सकते है। साथ ही हम देश के गरीब युवा वर्ग को साल-भर फ़िक्स आय दे सकते है। सरकार जिन रुप-यों का उपयोग केवल योजनाओं के संचालन में खर्च कर देती है। वह रुपया हम गरीब जनता को पेड़ लगाने के लिए दे सकते है।     

जैसा हमने कहा है की हम देश की सभी छोटी-बड़ी नदियों का सीमांकन करेंगे और उनके दोनों किनारों पर बांध के साथ फलदार और दीर्घायु पेड़ों से भरा वन लगाने का कार्य करेंगे। हम  इस तरह दो मुख्य समस्याओं को हल कर सकेंगे।  पहला : मृत हो रही नदियों को  जीवन-दान दिया जा सकेगा। दूसरा : वृक्षों पर आश्रित जीव जंतुओं की पुनः वापसी संभव होगा। 

हमारी सरकार नए और वर्तमान सड़को के दोनों किनारों पर ३० फिट चौड़ा स्थान रिक्त कराएगी। जिस पर तीन क्रमबद्ध तरीके से पेड़ लगाये जायेंगे।  जो इस प्रकार से होगा: 

हम सड़क की तरफ वाले हिस्से में झाड़ीदार फूल वाले पौधे लगाएंगे। उसके पीछे यानि बीच के हिस्से में छोटे कद वाले पेड़ लगायेंगे। जैसे :  आवला, सहतूत, सहजन आदि। सबसे पीछे वाले हिस्से में दीर्घायु पेड़ जैसे पीपल, पाकड़, बरगद,  नीम, जामुन, महुआ, आम, कटहल आदि फलदार पेड़ लगाए जायेंगे। इस तरह से पेड़ लगाने से कई लाभ होंगे। पहला : सड़क किनारे छोटे झाड़ियों दार पेड़ होने से गाड़ियों को पेड़ से टकराने से होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा। दूसरा : आस-पास  रहने वाले लोगों को खाने के लिए फल प्राप्त हो सकेगा। 

हमारी सरकार वन क्षेत्र में इमारती पेड़ों के साथ जंगली फलदार और औषधि-यों के पेड़ पौधे लगवाने  भी कार्य करेगी।  जिससे वन की वास्तविक स्थिति को पुनः स्थापित सके। और वन्य जीवों का पलायन रुक सके।

Previous Post
Newer Post

Leave A Comment