भारत देश बहु-सांस्कृतिक उदभव एवं भण्डारों का केन्द्र है, जो भारत की अतिप्राचीन विरासत एवं सभ्यताओं को संजोये हुई। यहाँ के निवासी और उनके जीवन शैलियां, उनके नृत्य और संगीत शैलिया, कला और हस्तकला जैसे : अनके कला एवं परम्पराए भारतीय संस्कृति की विरासत को जीवंत बनाए हुए है, जो देश की राष्ट्रीयता और आत्मनिर्भरता की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करते है।
भारत देश में 36 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की अपनी-अपनी विशेष सांस्कृतिक और पारंपरिक पहचान है, जो वहाँ के प्रचलित कला के भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई देती है। भारत के हर प्रदेश में कला की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोक कला के अलावा परंपरागत कला का एक अन्य रूप भी है जो अलग-अलग जनजातियों और देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातिय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत की लोक और जन जातीय कलाएं बहुत ही पारंपरिक और साधारण होने पर भी इतनी सजीव और प्रभावशाली हैं कि उनसे देश की समृद्ध विरासत का अनुमान स्वतः हो जाता है।
भारत के परंपरागत सौंदर्य भाव और तमाम पौराणिक प्रामणिकता इनसे जुडी तमाम भारतीय लोक कला की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में संभावना बहुत प्रबल है। भारत की सर्वाधिक प्रसिद्ध लोक चित्रकलाएं है, बिहार की मधुबनी चित्रकारी, ओडिशा राज्य की पत्ताचित्र चित्रकारी, आन्ध्र प्रदेश की निर्मल चित्रकारी और इसी तरह लोक के अन्य रूप है। जैसे: मिट्टी के वर्तन, गृह सज्जा, जेवर, कपड़ा डिजाइन आदि। वास्तव में भारत के कुछ प्रदेशों में बने मिट्टी के वर्तन और वस्त्रों की विशिष्ट और परंपरागत सौंदर्य के कारण विदेशी पर्यटकों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है।
भारत में जहाँ आत्मनिर्भर बनने के इतने संसाधन उपलब्ध है। वही हमारी निचले स्तर की राजनीति ने हमें आज दूसरों पर निर्भर रहने का साधन बना दिया है। भारत देश की तमाम सांस्कृतिक एवं वैवाहिक परम्पराए, त्यौहार आदि का देश है , जहाँ लोगो आदि कल से इसी के द्वारा आत्मनिर्भर बने हुए थे। सभी के पास काम और सम्मान दोनों था। सभी सुखी थे, कोई भूखो नहीं मरता था। वर्षों की गुलामी ने हमारी सभी संस्कृतिओं और परम्परों से जुडी व्यवसायों को छिन्न-भिन्न कर दिया है। आजादी के बाद भी आज हम विदेशी द्वारा सिखाये गए मार्ग पर ही चल रहे है। हमारे पास आत्मनिर्भरता के साथ जीवन जीने के इतने संसाधन होने के बावजूद हम दूसरे के ऊपर निर्भर है और हम भूखे मर रहे है। अजीब बात यह है कि हमारी इन्ही परम्पराओं से सम्बंधित उत्पादों को हम दूसरे देशो से खरीद रहे है। वे विकसित हो चुके और हम विकासशील बने हुए है, हम बेरोजगार है, ऐसा क्यों हुआ ? हमने चिंतन करना चाहिए।
भारत महापरिवार पार्टी भारत की सांस्कृतिक पराम्परागत साहित्य, कला और हस्तशिल्प आदि पर आधारित सभी व्यवसायो को पूर्नजीवित करेगी। हमारी सरकार ऐसे सभी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए साझा कार्यक्रम के अंतर्गत काम करेगी और आधुनिक माध्यमों के द्वारा निःशुल्क प्लेटफॉर्म प्रदान करेगी।
हमारी सरकार ऐसे लोगों को देश और दुनिया में व्यापार फैलाने के लिए तीन स्थायी विकल्प प्रदान करेगी।
आर्थिक मदद एवं प्रोत्सहनः- प्रत्येक पराम्परागत कला, शिल्प, हस्तकला से जुडे कारीगरों को सरकार आर्थिक सहायता के साथ उनके द्वारा निर्मित उत्पाद को संपूर्ण भारत तथा विश्व स्तर तक ले जाने का प्रयास करेगी।
ऑनलाइन द्वारा बिक्री : हम पारंपरिक उत्पादों को बनाने वालों को सीधा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म प्रदान कर्नेगे और उत्पादों को दुनिया भर में बेचने के लिए एक मार्केटिंग सेल की स्थापना करेंगे। जिससे हमारे देश के उत्पाद पूरी दुनिया में बेचे जा सके।
आउटलेट द्वारा बिक्री : हम पारंपरिक व्यवसाय को स्थाई बनाने और उनसे जुड़े लोगो को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्थानीय, राज्य और केंद्र स्तर पर आउटलेट प्रदान करेगी। जिससे वे अपने उत्पाद को बढ़ा सके।
हमारी सरकार पराम्परिक उत्पादों को बाजार प्रदान करने के लिए प्रत्येक शहर में खादी बाजार के नाम से एक मॉल बनाएगी। जिसके अर्न्तगत उन्ही व्यक्तियों को शॉप दिया जाएगा, जो पारंपरिक उत्पादों को निर्मित करते है। जिससे वे स्वयं के उत्पाद को बाजार में आसानी से बेच सके। साथ ही जैसा मैंने बताया हम ई-कामर्स वेब एप्लिकेशन के माध्यम से भारत तथा विश्व स्तर तक के मांगों के आधार पर बेचने का एक आसान प्रणाली दे रहे है।