वर्तमान रिथति: इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) ने हाल ही में रोजगार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिसमें बताया गया है कि भारत में बेरोजगारी का स्तर पिछले साल की तुलना में इस साल एक स्तर पर उपर बढ़ गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में 1 करोड़ 83 लाख लोग बेरोजगार थे, अब यानी साल 2018 में बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़कर 1 करोड़ 86 लाख हो गई है। श्रम मंत्री संतोष गंगावार ने कहा है कि बेरोजगारी के स्तर में लगातार वृद्धि होने के बावजूद भी सरकार कोई ठोस कदम नही उठा रही है।
भारत रोजगार 2016 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 11 करोड़ 70 लाख बेरोजगार थे। जिसमें से 1 करोड़ 30 लाख खुले तौर पर, 5 करोड़ 20 लाख प्रच्छन्न बेरोजगारी और वही 5 करोड़ 20 लाख ऐसी महिलाएं शामिल थी। जो काम नही करती थी, इन सभी आंकड़ों को इंडिया टूडें कॉन्क्लेव के दौरान अर्थ शास्त्री मोहन गुरू स्वामी ने शेयर किया है। उन्होने बताया भारत में 1.3 बिलियन कुल आबादी में से 11 करोड़ 70 लाख लोगों को आज भी नौकरी नही मिली है। अगर श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट देखी जाए तो आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों का देश बन गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत की 11 फीसदी आबादी लगभग 12 करोड़ लोग बेरोजगार है।
साल 2015 में सिर्फ 1 लाख 35 हजार लोगों को ही नौकरी मिली है, रिपोर्ट के अनुसार हर रोज 550 नौकरियाँ खत्म हो रही है। श्रम रोज़गार की रिपोर्ट कहती है कि स्वरोजगार के मौके घटे हैं और नौकरियाँ कम हुई है। वही संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट में बताया गया था कि साल 2018 में भारत में बेरोज़गारी का स्तर बढ़ सकता है, जैसा कि आज हम देख ही रहे है, साल 2017 के शुरूआती 4 महीनों के लेकर CMIE (Center For Monitoring India Economy Pvt. Ltd) ने सर्वे किया था जिसमें पाया गया कि जनवरी से अप्रैल के बीच में तकरीबन 15 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई है और बेरोज़गारी का स्तर बढ़ा है।
राजनीतिकरण :- वर्तमान में श्रमीक लाभ/रोजगार देने का मुद्दा पार्टीयां/सरकार के लिए एक अहम मुद्दा होता है। जिसके अर्न्तगत सरकार युवाओं को नौकरी देने के बड़े-बड़े वादे करती है। सरकार में आने के बाद, सरकार जिन रिक्तियों को भर्ती है। उनमे वह स्वयं कमीशन लाभ को पाने के लिए बदरबाट करती है। यह देश की बहुत बढ़ी विडम्बना है। कि नौकरी देने के नाम पर, युवाओं के थोड़ा ठगा जाना। युवाओं के धन और समय के बर्बाद करना। युवाओं को मानसिक रूप से दुर्वल बनाना। और उनका शोषण करना। यह आम हो चुका है।
श्रम-एवं-रोजगार समाधान नीति 2019
भारतीय पहचान पात्रता संख्या से यह सुनिश्चित हो जायेगा। कि देश में ऐसे कितने युवा है, जो बेरोजागर है, जिनकी आय का कोई स्रोत नही है। इस तरह स्पष्ट आँकड़े होने की दशा में श्रम मंत्रालय, रोज़गार देने की सुनिश्चित योजना बनाकर पारदर्शी नियुक्तियां कर पायेगा।
श्रमिक एवं रोज़गार के प्रबंधन:
हमारी इस प्रणाली में हम श्रमिक एवं रोज़गार के प्रबंधन के लिए एक एप्लिकेशन जारी करेंगे। जिसके अंतर्गत देश के समस्त विभाग/संस्थाएं/प्राइवेट संस्थाएं सभी को इन-पैनल किया जाएगा। इसी पैनल के आधार पर विभाग/संस्थाएं/प्राइवेट संस्थाएं रिक्त पदों को आमंत्रित/परीक्षा/रिजल्ट/नियुक्ति/पेंशन आदि का प्रबंधन करेगी। जिससे देश की सरकारी एवं निजी संस्थाओं के आँकड़े के साथ उनमे कार्यरत लोगों के आँकड़े स्पष्ट हो।
इस प्रक्रिया से देश के सरकारी और निजी संस्थाओं में कितने पद कब रिक्त हो रहें है, यह ज्ञात होता रहेगा। इस तरह विभाग रिक्त पदों को भरने के लिए उचित प्रबंधन कर सकेगी। इस तरह सरकार पारदर्शी व्यवस्था के रूप में कार्य कर सकेगी। सरकार इसे तीन चरणों में बॉटकर कार्य करेगी। प्रथम: देश की समस्त सरकारी/ग़ैरसरकारी/प्राइवेट संस्थाएं को इन पैनल करना। दूसरा: देश के संगठित तथा असंगठित श्रमिकों के रूप में कार्यरत लोगों के स्पष्ट आँकड़े। जिन्हे रोज़गार एवं स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना। तीसरा: देश की सभी नियुक्ति प्रबंधनों का एकीकरण करना।
देश के संगठित तथा असंगठित श्रमिकों के रूप में रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों तथा बेरोजगारों की वर्तमान स्थिति एवं सुधारनीतिः-संगठित श्रमिकः-संगठित क्षेत्र के अंतर्गत मुख्य रूप से वे प्रतिष्ठान आते है जो 1948 के फ़ैक्टरी अधिनियम, राज्य सरकारों के दुकानों एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों से सम्बंध अधिनियमों औद्योगिक रोज़गार स्थायी आदेश अधिनियम, 1946 आदि के अर्न्तगत समाहित है। इस क्षेत्र का पहले से एक ढांचा तैयार है, जिसके माध्यम से इन अधिनियमों के तहत आने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा लाभ पहुँचाए जाते है। संस्था-गत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का लाभ ईपीएफओ और इएसआईसी योजनाओं के माध्यम से प्रदान किया जाता है। इस प्रणाली में संस्थाओं का एकीकरण होने से संगठित श्रमिकों की स्थिति स्पष्ट होती रहेगी।
असंगठित श्रमिकः- असंगठित श्रमिक से आशय उन श्रमिकों से है जिनका कोई संगठन नही होता या यू कहें कि वह किसी संस्था में नियमित कार्यरत नही होते है। जो असंगठित अथवा अनियमित उद्योगों में काम करते है। फलस्वरूप उन्हें कार खाना अधिनियम 1948 के प्रावधानों के तहत किसी प्रकार की सुविधा प्राप्त नही हो पाती हैं क्योंकि उनका रोज़गार अस्थाई होता है तथा नियोक्ताओं द्वारा विभिन्न प्रकार की सुविधाओं से वंचित रखा जाता है जो अपने सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु स्वयं को संगठित नही कर सके है क्योंकि इनका रोज़गार आकस्मिक प्रकृति का है, उनमें निरक्षरता एवं अज्ञनता है, जिन प्रतिष्ठानों में वे कार्यरत है उनका कार्यकारी निवेश अति निम्न है और उनका आकार भी छोटा है। उनके प्रतिष्ठान केन्द्रीय-कृत न होकर छितरे हुए हैं तथा उनके नियोक्ता अथवा सामूहिक की शक्ति श्रेष्ठ है। असंगठित श्रमिकों की वास्तविक संख्या राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 1999-2000 के अनुसार भारत में असंगठित क्षेत्र में 36.9 करोड़ श्रमिक कार्यरत है जबकि संगठित क्षेत्र में 2.8 करोड़ अर्थात कुल श्रम शक्ति का 92.9 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र मे कार्यरत है। मात्र 7.1 प्रतिशत श्रमिक संगठित क्षेत्र में कार्यरत है, जिन पर न्यूनतम मजदूरी अधिनयम लागू होता है तथा विभिन्न प्रकार की सूविधाए नियोक्ताओं द्वारा लागू की जाती है, जबकि 92.9 प्रतिशत श्रमिक जो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है उन्हें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू न होने के कारण विभिन्न प्रकार की सुविधाओं से वंचित रखा गया है। जो निम्नवत हैः-
असंगिठत क्षेत्र में निजी अनियमित क्षेत्र के सभी उद्यम शामिल किए जाते है। जिनका स्वामित्व व्यक्तियों या परिवारों में होता है और सेवाओं के उपरान्त और विक्रय का कार्य करते है और जिनमें 10 से कम व्यक्ति कार्यरत होते है। जिनमें रोज़गार का स्वरूप मौसमी और अस्थायी किस्म का होता है। श्रमिकों की गतिशीलता अधिक है। मन-माने ढंग से परिश्रमिक तय किया जाता है। कार्य का स्वरूप बिखरा हुआ है, श्रम अनियमित ढंग का है, संगठनत्मक सहायता का अभाव है, मोल-भाव करने की क्षमता इन श्रमिकों में कम होती है।
इस प्रकार की अनेक समस्याएं इन श्रमिकों के साथ रहती है। जिनसे यह क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयों के प्रति कमजोर हो जाता है। असंगठित क्षेत्र में कार्य का स्वरूप ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के बीच अलग-अलग किस्म का है। जिसमें दूर-दराज़ के ग्रामीण क्षेत्र से लेकर अत्यधिक भीड़-भाड़ वाले शहरी क्षेत्र शामिल हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इसके अन्तर्गत भूमिहीन खेतिहर मजदूर, छोटे और सीमांत किसान, बटाईदार, पशु-पालन में लगे लोग, मछली उद्योग, बागवानी, मधुमक्खी पालन और ताड़ी निकालना, वनों में काम करने वाले श्रमिक, ग्रामीण कारीगर आदि शामिल हैं।
इस तरह इस क्षेत्र में वस्तुओं का उत्पादन और वितरण करने वाले तथा सेवा प्रदान करने वाली बहुत छोटी-छोटी इकाईयाँ शामिल हैं। तथा अधिकांश स्वतंत्र स्व-नियोजित व्यक्तियों से सम्बंधित है। वे पारंपरिक श्रम को नियोजित करते हैं। बहुत कम पूॅजी से कार्य करते तथा बहुत ही निम्न स्तर की प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते है। यह क्षेत्र मिला-जुला क्षेत्र भी है तथा जहाँ एक लघु आधुनिक विनिर्माण और सेवा उद्यमी है। तो वही शहरी क्षेत्रों में मुख्य रूप से निर्माण, बढई गिरी, ट्रांसपोर्ट, संचार आदि में लगे शारीरिक श्रमिकों के साथ गलियों में घूम कर सामान बेचने वाले हॉकर, सिर पर सामान ढोने वाले मज़दूर, मोची, टिन-कर्मी, स्ट्रीट विक्रेता, जूते पालिश करने वाले, कुड़ा-करकट उठाने वाले, कबाड़ी, फेरी वाले, रिक्षा चालक, लघु व्यापार और वाणिज्यिक उद्यमी छोटे पैमाने के परिवहन चालक, सड़क किनारे के ढाबे, पान की दुकान, छोटी बेकरी, खाद्य संसाधन यूनिटे, चमडे़ की वस्तुओं, वस्त्र निर्माता आदि शामिल हैं।
सामाजिक असुरक्षा- श्रमिकों को दोनो वर्गो को अलग-अलग प्रकार की दुर्बलताओं एवं जोखिमों को झेलना पड़ता है और इसलिए उन्हें समाज के कमजोर वर्गो की संज्ञा दी जाती है। इन्हें दो प्रकार की दुर्बलताओं का सामना करना पड़ता है- नौकरी की असुरक्षा अथवा सामाजिक असुरक्षा या दोनों।
- असंगठित क्षेत्र में नियमित श्रमिक ऐसे मज़दूर होते हैं। जो दूसरों के लिए काम करते है। इन श्रमिकों को सामाजिक असुरक्षा को झेलना पड़ता है और इन्हें बीमारी, चोट या वृद्धावस्था के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नही होती। इसके विरूद्ध अस्थायी श्रमिकों या दिहाड़ीदार मज़दूरों को दोनो प्रकार की असुरक्षा नौकरी की असुरक्षा और सामाजिक असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। जो निम्नवत हैः-
- असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की आय संगठित क्षेत्रों की तुलना में न केवल कम है। अपितु अनेक बार तो इतनी कम होती है कि वे जीवन स्तर के न्यूनतम निर्वाह योग्य भी नही होती। कभी-कभी कृषि एवं निर्माण में पूरे वर्ष रोज़गार न मिलने के कारण सम्पूर्ण आय और भी अधिक कम हो जाती है।
- असंगठित श्रमिकों को काम की सुरक्षा प्राप्त नही होती क्योंकि उनके रोज़गार का स्वरूप अस्थायी होता है। जैसे कृषि एवं निर्माण में, क्योंकि वे निर्माण एवं सेवाओं सम्बंधी रोजगारों में अधिकांश समय तक कार्यरत रहते है। परन्तु नियोक्ताओं द्वारा उन्हें किसी भी समय काम से निकाला जा सकता है।
- वे सरकार द्वारा प्रदत्त सामान्य कल्याण संबंधी कुछ सुविधाओं का लाभ नही उठा सकते। जैसे -नगर में सुसेवित क्षेत्र में आवास न पा सकने के कारण, वे सार्वजनिक सुवधिओं तथा सड़को, बिजली, पेयजल, स्कूल एवं अस्पताल आदि सेवाओं का लाभ नही उठा सकते और उन्हें सहायता प्रदत्त आवास स्कीमों का लाभ भी उपलब्ध नही होता।
- असंगठित श्रमिक अपने वेतन तथा कार्यदशाओं को सुरक्षित करने हेतु संघो में संगठित नही हो सकते और उन्हें श्रम बाजार के उतार-चढ़ाव पर आश्रित रहना पड़ता है। जो सामान्यतया उनके विपरीत चलता है।
- असंगठित श्रमिक श्रम संघ संबंधी अधिनियमों से प्रशासित नही होते। क्योंकि ऐसे अधिनियम उन प्रतिष्ठानों जहाँ वे कार्यरत है। वहाँ पर लागू नही होते। अतएव उनके वेतन एवं कार्य दशा सुरक्षित नही होती। उन्हें चिकित्सा, देखभाल, दुर्घटना प्रति-पूर्ति लाभांष, वेतन सहित अवकाश एवं सेवा निवृत्ति आदि का लाभ प्राप्त नही होता।
असंगठित श्रमिकों के लिए सुधारनीतिः- जैसा मैनें उक्त में कहा है। किसी भी पारदर्शी नीति का आधार केवल स्पष्ट आंकड़े होने पर ही हो सकता हैं। जो भारतीय पहचान संख्या द्वारा प्रतिदिन स्पष्ट होगा। श्रमिकों के लिए हम LAEA (Labour and Employment Authority) का गठन करेंगे। जो देश के प्रत्येक संगठित और असंगठित श्रमिकों के आंकड़े रखेगा। जिससे हमें यह ज्ञात होता रहेगा कि देश में ऐसे कितने लोग है, जो असंगठित रूप से काम कर रहें है। इस प्रकार सरकार का लक्ष्य है। इनके समाजिक तथा आर्थिक स्थित तथा जीवन स्तर को ऊँचा उठाकर समाज की मुख्य धारा में लाना।
हमने असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए एक आप्लिकेशन तैयार किया है। जिसके तहत अस्थाई निकायों के रूप में कार्यरत श्रमिकों जैसे : खेतिहर मज़दूर, सभी निर्माण कार्यों में लगे मज़दूर आदि को इन-पैनल करेगी। जिसके अंतर्गत श्रमिकों की वास्तविक स्थिति तथा उनके प्रतिदिन के श्रमिक कार्यो पर पूर्ण नियंत्रण रखेगी।
इस तरह यह सुनिश्चित किया जायेगा। कि प्रत्येक मज़दूर को माह में 25 दिन का रोज़गार उपलब्ध हो सके। इस प्रणाली में किसी व्यक्ति को अपने निजी निकायों के निर्माण कार्यो के लिए, खरेलु, खेती आदि के लिए श्रमिकों को खोजने की कोई आवश्यकता नही होगी। इस प्रक्रिया में कोई भी व्यक्ति अपने क्षेत्र के सभी श्रमिकों के विवरण को त्वरित देख कर सकेगा। उन्हें दिहाड़ी/साप्ताहिक, माह-वार, तथा घंटों के हिसाब से अपने कार्यो के लिए रख सकेगा है।
इस प्रणाली में श्रमिकों को काम के बदले कम मिलने वाली मजदूरी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। श्रमिक जितने दिन काम करेगा। काम का हर समय पारदर्शी आकलन होता रहेगा। इस प्रकार अगर श्रमिक द्वारा 25 दिन काम पूर्ण कर लेता है , तो ५ दिन की मजदूरी मूल्य हमारी सरकार द्वारा दिया जायेगा। जो केवल खेतिहर मज़दूरों तथा निर्माण कार्यो में लगे मज़दूरों को ही प्रदान किया जाएगा।
इस प्रक्रिया में श्रमिक को काम करनी की पूरी स्वतंत्रता दी जाएगी। वर्तमान में आठ घंटे से अधिक कोई भी कार्य नही ले सकता। लेकिन इस प्रणाली के आने पर श्रमिक चाहे तो ओवर टाईम कार्य कर सकता है। शर्त सिर्फ इतना है , मालिक को स्वस्थ फिटनेस प्रमाण-पत्र देना अनिवार्य है। श्रमिक घंटे-वार, दिन वार , साप्ताहिक, मासिक और वार्षिक विकल्प को चुन सकता है।
श्रमिकों की सामाजिक स्थित को सुधारने के लिए सरकार सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से पहले से भारतीय पहचान संख्या पर गरीबी रेखा के लोगों के लिए बीमा प्रावधान को सुनिश्चित कर रखा है। जिसके अर्न्तगत स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा, बच्चों की पढ़ाई तथा पोशण, बच्चीयों को 21 साल बाद मिलने वाले लाभ (21 लाख) प्राप्त होगें।
असंगठित श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन सारणीः-
| क्र0 | कार्य विवरण | न्यूनतम मजदूरी | पूरा समय | पार्ट टाईम ओवर टॉइम |
| 1. | खेतीहर मजदूर सभी प्रकार के निर्माण कार्यो में लगे मजदूर, दुकानों प्रतिष्टानों, और घरों में लगे कार्य करने वाले मजदूर तथा घरो में कार्य करने वाले लोग आदि | 350रुपया | समय 8 घंटे | प्रतिघंटा 44रू0 |
| 2. | निर्माण कार्यो में लगे मिस्त्री वर्ग, लघु उद्योगों में लगे मिस्त्री, लघु व्यापार आदि में लोग। | 500 रुपया, | समय 8 घंटे, | प्रतिघंटा 63 रू0 |
| 3. | माल वाहक वाहन चालक, परिवहन चालक | 600 रुपया, | समय 8 घंटे, | प्रतिघंटा 75 रू0 |
परीक्षा एवं नियुक्ति प्रबंधनः- इस प्रणाली द्वारा हम आधुनिक तरीके से परीक्षाओं का संचालन करेंगे। समस्त परीक्षाओं का संचालन आवेदनकर्ता के ज़िले से ही संम्पन होगा। साथ ही मौखिक परीक्षाओं का भी प्रबंधन ज़िले से ही किया जायेगा। इसके लिए जिला स्तर पर संचालित सेवायोजना केंद्रों का आधुनिकीकरण किया जायेगा। इस प्रकार हम देश की सरकारी या निजी सभी संस्थाओं की रिक्त हुए पदों पर नियुक्तियों का प्रबंधन जिला के सेवायोजन केंद्रों से ही करेंगे।
परिणाम तथा नियुक्ति: – इस प्रक्रिया परिणाम त्वरित रूप से दिया जायेगा। जिस नियुक्ति पत्र उन्हें आधुनिक माध्यमों से भेज दिया जाएगा।
घर पर रोज़गार : ऐसे कार्य जिसे व्यक्ति घर पर रहकर कर सकता है। विशेष कर आईटी क्षेत्र आदि। आज भी यह कार्य बड़ी संख्या में होते है। जिसे कुछ विदेशी और देशी कम्पनियाँ करती है। हमारी सरकार रिमोट Work Process को स्थाई मान्यता देगी। जिसके अंतर्गत आईटी क्षेत्र की कंपनियों को बढ़ावा दिया जाएगा। इस तरह कोइ भी व्यक्ति घर पर रहकर Remote Process के अनुसार कर पाएँगे। इस प्रणाली के आने से आई टी कंपनी खोलने के लिए बड़ी ऑफिसों की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी। कम्पनियाँ देश में युवाओं को फुलटाईम एवं पार्ट टाइम के अनुसार नियुक्ति कर सकते है। जिससे अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार से जोड़ा जा सके।
